Tuesday, 16 July 2024

क़िस्त ( नदलेस द्वारा परिचर्चित कहानियों का संकलन), संपादक : डॉ. अमित धर्मसिंह



 संपादकीय

नदलेस के साहित्यिक अवदान की यह क़िस्त

                     -डॉ. अमित धर्मसिंह

          'चींटी हैं हमारी सांसें जो कुरेद-कुरेदकर, फेंक रही हैं, हमीं को हमीं से बाहर।' हर समय हम थोड़ा-थोड़ा चुकता हो रहे हैं। इससे पहले कि वक्त के साथ-साथ हम पूर्णरूपेण चुकता हो जाएं, हमें बना लेना चाहिए अपना ऐसा प्रतिबिंब जो हमारे बाद भी हमें जिंदा रख सके। यह प्रतिबिंब तभी बनाया जा सकता है जब हम स्वयं के चुकने से पहले अपने 'होने' को सार्थक करें। अपने होने को सार्थक करने के अनेक मार्ग और मध्यम हो सकते हैं। हम जिस प्रकृति, परिवार और समाज में रहते हैं, पलते हैं, बड़े होते हैं उनके प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। यदि हममें सिर्फ लेने का भाव होता है, देने का नहीं तब हम वक्त के साथ-साथ चुकता तो जाते हैं लेकिन अपने विविध ऋणों को चुकता नहीं कर पाते हैं। ज्ञात हो कि जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता। हर किसी चीज़ की कुछ न कुछ कीमत अवश्य होती है। यह कीमत प्रत्येक संबंधित को देर-सवेर चुकानी पड़ती है। बात जीवन की हो, सफलता की हो अथवा साहित्य की ही क्यों न हो; प्रत्येक की अपनी कीमत होती है। यह कीमत प्रत्येक संबंधित को विविध रूप में अदा करनी पड़ती है। इस संदर्भ में रचनाकार की प्रत्येक रचना 'पे बैक टू सोसाइटी' की एक 'क़िस्त' ही होती है। प्रकृति, परिवार और समाज से रचनाकार जो कुछ लेता अथवा सीखता है, उसी को अपनी रचनाओं के माध्यम से किस्तवार लौटाता है। कह सकते हैं कि उसकी प्रत्येक रचना उसके द्वारा अर्जित अनुभव के बड़े भाग का छोटा भाग, अंश, टुकड़ा अथवा क़िस्त होती है जिसे वह भुगतानस्वरूप, साहित्य और समाज को अदा करता है। प्रस्तुत संकलन में दर्ज प्रत्येक कहानी संबंधित कहानीकार द्वारा 'पे बैक टू सोसायटी' की ही एक क़िस्त सरीखी है। इसे चुकाने के लिए प्रत्येक कहानीकार अपने-अपने अनुभव की भट्टी में तपा है, अनुभूति और सहानुभूति के तीरों से बिंधा है, विचार शृंखला के दुरूह मार्ग पर चला है, तब कहीं जाकर यह क़िस्त अदा हो पायी है। इन कहानियों में समकालीन विमर्श आ समाएं हैं। किन्नर विमर्श, जेंडर विमर्श, ट्रांसजेंडर विमर्श, स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श और इन सबसे बढ़कर दलित विमर्श इन कहानियों का केंद्रीय भाव अथवा 'स्थायी भाव' है। वैसे, दलित विमर्श में उक्त तरह के विमर्श समाए ही होते हैं। कहा भी जाता है कि 'दलित विमर्श एक अंबरेला (छाता) है जिसके नीचे अधिकांश विमर्श आ समाते हैं।' यह संकलन भी एक अंबरेला के समान है जिसमें अनेक प्रकार की भावभूमि और विमर्श वाली कहानियां आ समायी हैं। प्रत्येक कहानी संबंधित कहानीकार की रचनाधर्मिता और सामाजिक दायित्वबोध की एक सुगढ़ क़िस्त है। इन्हीं बारह परिचर्चित कहानियों की बारह क़िस्तों से नदलेस के साहित्यिक अवदान की यह वृहत और समृद्ध क़िस्त (पुस्तक) तैयार हुई है।
        नदलेस यानी नव दलित लेखक संघ, दिल्ली ने गत वर्ष (सितंबर, 2022 से अगस्त, 2023) तक कुल 35 गोष्ठियां आयोजित की। ये गोष्ठियां ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरह से आयोजित हुई। स्वतंत्र काव्य पाठ, नव सदस्य सम्मिलन, दिवस विशेष और घटना विशेष संबंधी, दो दशकाधिक गोष्ठियां रखने के बावजूद पूरा सत्र कहानी परिचर्चाओं पर केंद्रित रहा। नदलेस की दूसरी कार्यकारिणी का पूरा (एक वर्षीय) कार्यकाल एक तरह से कहानी कार्यशाला की तरह रहा। पूरे वर्ष कुल चौदह कहानियों पर परिचर्चा गोष्ठी रखी गई। डॉ. अमिता मेरोलिया की कहानी परित्याग, डॉ. मनोरमा गौतम की कहानी शांता, महिपाल की कहानी अनोखे लाल चश्मे वाला, नितिन यादव की कहानी स्वतंत्र भाला, सतीश खनगवाल की कहानी सपनों का घर, डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन की कहानी चमार का कुआं, डॉ. संजीत कुमार की कहानी इक्कीस पोस्ट, हुमा खातून की कहानी एक रास्ता, मामचंद सागर की कहानी गद्दार, डॉ. कुसुम वियोगी की कहानी आटे सने हाथ, पुष्पा विवेक की कहानी अभिशप्त जीवन, डॉ. पूनम तुषामड की कहानी ठोकर, सरुप सियालवी की कहानी अंबेडकरी और डॉ. अमित धर्मसिंह की कहानी मॉडल के अलावा बंशीधर नाहरवाल के उपन्यास गरीबा की तिजोरी पर परिचर्चा और डॉ. कुसुम वियोगी के सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह धारा के विरुद्ध का लोकार्पण एवं चर्चा गोष्ठी भी आयोजित की गई। चूंकि, पूरा सत्र कहानी कार्यशाला की तरह रहा इसलिए प्रस्तुत संकलन में केवल परिचर्चित कहानियों और उनसे जुड़ी रिपोर्ट्स आदि को ही प्रस्तुत कहानी संकलन में संकलित किया गया है। दो कहानियों की मूल कॉपी, समय से उपलब्ध न हो पाने के कारण चौदह परिचर्चित कहानियों में से भी केवल बारह कहानियां और उनकी रिपोर्ट्स ही संकलन में संकलित की जा सकी हैं। रिपोर्ट्स के संबंध में यह बात उल्लेखनीय है कि आरंभ में यह संकलन बनाने की योजना नहीं थीं, इस कारण आरंभ की तीन-चार कहानियों की समुचित रिपोर्ट (कहानी केंद्रित) तैयार नहीं की जा सकी थी। बाद में होने वाली परिचर्चाओं की प्रेस नोट कहानी केंद्रित रहीं और एक के बाद एक, अधिक परिष्कृत और परिवर्धित होती चली गई। बावजूद इसके, कुछेक कहानियों की रिपोर्ट्स को अखबार आदि में स्थान नहीं मिला सका है लेकिन इन सब बातों से किसी भी कहानी का महत्त्व कम नहीं हो जाता है। संकलन में दर्ज प्रत्येक कहानी अपनेअाप में बेजोड़ है। भले ही वह किसी नौसीखिए रचनाकार की कहानी हो अथवा प्रतिष्ठित कहानीकार की कहानी। जिन रचनाकारों ने पहली-पहली बार कहानी लिखी है, उन्होंने नदलेस की कहानी-कार्यशालाओं का रचनात्मक लाभ उठाकर ही कहानी लिखने में हाथ आजमाया है। परिचर्चा करने वाले वक्ताओं ने संबंधित कहनीकारों की कहानियों में सुधार करने हेतु पर्याप्त सुझाव प्रस्तुत किए, जिससे नए कहानिकारों के साथ-साथ प्रतिष्ठित कहानिकारों को भी अपनी कहानियां मांजने का सुवसर प्राप्त हो सका। इसके अलावा देश भर के, और भी बहुत से साथियों ने नदलेस की कहानी-कार्यशालाओं से बहुत कुछ अर्जित किया। कुल मिलाकर नदलेस का कहानी-कार्यशाला सत्र पूर्ण रूप से सफल और रचनात्मक रूप से अत्यंत लाभकारी सत्र रहा। इसका प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत कहानी संकलन है।
          संकलन में दर्ज कहानियों के विषय में अति संक्षिप्त बात करें तो - डा. मनोरमा गौतम की कहानी 'शांता', एक किन्नर के जीवन पर आधारित है। इस कहानी में किन्नर समाज की समस्या तथा उनकी पीड़ा को दिखाने का प्रयास किया गया है। नितिन यादव की कहानी 'स्वतंत्र भाला' छवि निर्माण के इस दौर में आईटी सेल में कार्यरत युवाओं के भटकाव की कहानी है। यह कहानी बताती है कि किस तरह युवा आईटी सेल के भ्रमजाल में फंसे हुए होते हैं। सतीश खनगवाल द्वारा लिखी गई कहानी "सपनो का घर" एक कर्मचारी द्वारा सपनों का घर खरीदने के इर्दगिर्द घूमती है। व्यक्ति आदिवासी समाज मे पैदा हुआ और जीवन की कठिनाईपूर्ण परिस्थितियों में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर अध्यापन संबंधी सरकारी नौकरी पाई लेकिन व्यवस्था ने उसके सपनों के घर पर जातीवाद की दीवार खड़ी कर दी और जातंकवादी समाज ने उसे सपनों का घर खरीदने नहीं दिया। डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन मूलतः गुजराती भाषी हैं, इस नाते उन्हें हिंदी में कहानी लिखने में भाषा संबंधी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, उनकी कहानी "चमार का कुंआ" हिंदी की बेहतर कहानी बन पड़ी है। कहानी के यूं तो कई महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं लेकिन उनमें ठाकुर संग्राम सिंह का हृदय परिवर्तन और उनकी पत्नी की जागरूकता, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। कहानी में ठाकुर और ठकुराइन द्वारा सोमा चमार के कुएं का पानी पिया जाना दर्शाता है कि सबसे पहले मनुष्य का जिंदा रहना जरूरी है, बाकी सब जातिवादी और धार्मिक आडंबर बाद की बात है। डा. संजीत कुमार की कहानी 'इक्कीस पोस्ट' दलित समाज के सफाई कर्मियों की इक्कीस पोस्टस में हुई धांधलेबाजी और न्यायिक प्रक्रिया की लेटलतीफी को आधार बनाकर लिखी गई है। इक्कीस पोस्ट के बहाने, इस एक कहानी में संबंधित दलित समाज की त्रासदियों से जुड़ी और भी कई त्रासद कहानियां आ समाई हैं। हुमा ख़ातून की कहानी 'एक रास्ता' प्रेम के त्रिकोण को दर्शाती है। इसमें मुख्य पात्र जानकी प्रसाद चतुर्वेदी है जिसकी पत्नी श्यामा देवी और पूर्व प्रेमिका कुसुम देवी है। भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद के चलते जानकी प्रसाद और कुसुम की शादी नहीं हो पाती है, फिर भी वे एक दूसरे से मिलने-जुलने का एक रास्ता निकाल ही लेते हैं।
          मामचंद सागर की कहानी 'गद्दार' हमाम में सब नंगे की सामाजिक त्रासदी पर लिखी गई कहानी है। कहानी के चारों मुख्य पात्र, तिवारी, एंटनी, गयादीन और मरियम सभी अपनी-अपनी जगह गद्दार हैं। कोई अपनी नौकरी से, कोई अपने समाज से तो कोई अपने परिवार से गद्दारी कर रहा है। डा. कुसुम वियोगी की कहानी 'आटे सने हाथ' दलित समाज में स्त्रियों की शिक्षा और त्रासद जीवन की ओर ध्यान आकर्षित करती है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्त्री जीवन कष्टमय ही बना हुआ है। कहानी इस ओर ध्यान आकर्षित करने में सफल कहानी है। पुष्पा विवेक की कहानी अभिशप्त जीवन, ऐसे दलित परिवार से संबंधित है जिसमें पितृसत्ता और पुरुषसत्ता दोनों देखने को मिलती है। कहानी का मुख्य पात्र चुन्नीलाल गैर जिम्मेदार और शराबी है। परिवार का ठीक से भरण-पोषण नहीं कर पाता है इसलिए उसकी पत्नी विद्या पांच छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। कहानी दर्शाती है कि किस तरह एक स्त्री पितृसत्तात्मक समाज में अभिशप्त जीवन को मजबूर  होती है। डॉ पूनम तुषामड़ की कहानी "ठोकर" मोंटी नामक ट्रांसजेंडर युवक की सामाजिक त्रासदी और संघर्ष से संबंधित कहानी है। समाज में अभी भी वह जागृति नहीं आई, जिसके चलते ट्रांसजेंडर जैसे युवक को समाज में आराम से रहने और जीने का अवसर मिल सके। मोंटी जैसे युवक-युवतियों का समाज में आज भी जीना दूभर हो जाता है। सरुप सियालवी की कहानी "अंबेडकरी" प्रो. अंबरीश 'अंबेडकरी' और प्रो. लीलावती के प्रेम से आरंभ होती है। किंतु , यह एक प्रेम कहानी न होकर, 'अंबेडकरी' मिशन पर आधारित कहानी है। प्रो. लीलावती, प्रो. अंबरीश के संपर्क में आती है और अंबेडकरवाद के विषय में जानती है। इस दौरान दोनों में प्रेम हो जाता है लेकिन प्रो. अंबरीश, लीलावती से शादी न करके, धन-लोलुपता को अधिक प्रश्रय देता है। इस कारण प्रो. लीलावती अविवाहित रहकर ही 'अंबेडकरी' मिशन को आगे बढ़ाने लगती है। डॉ. अमित धर्मसिंह की लंबी कहानी "मॉडल" मॉडल बनने की प्रबल इच्छा रखने वाली दलित लड़की साक्षी धीरान के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी में दूसरा मुख्य दलित पात्र नवल है। वह गीत लेखन के फील्ड में नाम कमाना चाहता है। इस संदर्भ में उसकी भेंट म्यूजिक एलबम बनाने वाले डॉ. बलवान वर्मा से होती है। वह मॉडल बनने के सिलसिले में साक्षी धीरान को भी उससे मिलवाता है, ताकि उसके गीत और साक्षी धीरान की मॉडलिंग परवान चढ़ सके। मगर डॉ. बलवान वर्मा का फोटोग्राफर सालू, डॉक्टर के फ्रोड होने का पर्दाफाश कर देता है जिससे वे दोनों डॉ. बलवान वर्मा से तो बच जाते हैं लेकिन समाज और जीवन की जटिलताओं के शिकार हो जाते हैं। कुल मिलाकर कहानी दुखांतक है जो भारतीय समाज में होने वाले जातीय शोषण, आर्थिक शोषण और स्त्री शोषण का वास्तविक मॉडल प्रस्तुत करती है।
          कुल मिलाकर, प्रत्येक कहानी अपने कथ्य, अनुभव और यथार्थ को लेकर एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। सोचने पर विवश करने वाली और विमर्श के लिए आमंत्रित करने वाली है। संकलन में दर्ज प्रत्येक कहानीकार के इस रचनात्मक सहयोग के लिए हृदय से आभार व्यक्त किया जाता है। सभी परिचर्चित कहानियों के कहानिकारों के साथ साथ उन पर परिचर्चा करने वाले सभी सम्मानित वक्ताओं का आभार भी हृदय में स्थायित्व लिए हुए है। गत यानी दूसरी कार्यकारिणी के प्रत्येक पदाधिकारी और सदस्य के साथ साथ उन तमाम आजीवन सदस्यों का भी आभार व्यक्त किया जाता है जिनके आर्थिक और रचनात्मक सहयोग से गत सत्र की योजना (यह संकलन) मूर्त रूप ले सकी है। परिचर्चा गोष्ठियों में किसी भी रूप में सम्मिलित रहने वाले प्रत्येक साहित्यकारों व श्रोतागणों के प्रति भी अतुल आभार प्रकट किया जाता है। (उक्त सभी का नामोल्लेख यहां इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि परिशिष्ट में दर्ज रिपोर्ट्स में सभी के नाम स्वत ही दर्ज हैं।) उक्त के अलावा, दोनों सहसंपादकों डॉ. गीता कृष्णांगी और लोकेश कुमार का स्नेहिल धन्यवाद कि जिन्होंने वांछित सहयोग देकर संकलन को यथासमय लाने में अग्रणी भूमिका अदा की। मित्र रचनाकार शीलबोधि का आभार जिन्होंने अतुल माहेश्वरी से भेंट करवाई। संकलन के टाइप सेटिंग से लेकर मुद्रित करवाने हेतु अतुल माहेश्वरी जी एवं उनकी समस्त टीम का सादर आभार। सुंदर और सार्थक कवर चित्र भिजवाने हेतु आदरणीय बंशीलाल परमार जी का सादर आभार। सनद रहे कि वर्तमान सत्र गद्य और पद्य की तीन-तीन विधाओं (आत्मकथा, उपन्यास, नाटक, नवगीत, ग़ज़ल व अतुकान्त कविता) से जुड़ी पुस्तक पर परिचर्चाओं का सत्र है। सभी विधाओं में एक स्त्री और एक पुरुष रचनाकार शामिल किया जा रहा है। इस तरह की परिचर्चाओं से जुड़ी पुस्तकों की समीक्षाओं के संकलन से भी एक समृद्ध समीक्षा ग्रंथ तैयार किए जाने की योजना है। इससे पूर्व नदलेस की रचनात्मक प्रस्तुति, सोच 1 और सोच 2 वार्षिकी का संपादन व प्रकाशन किया जा चुका है, जिनको आप सबका अमूल्य स्नेह और रचनात्मक सहयोग प्राप्त हुआ। फिलहाल यह संकलन आपको हाथों में है। उम्मीद है, पूर्व संकलनों की भांति, इस संकलन को भी आपका अमूल्य स्नेह और रचनात्मक सहयोग प्राप्त होगा।

08/04/2024

नांगलोई, दिल्ली -41
amitdharmsingh@gmail.com

क़िस्त (नदलेस द्वारा परिचर्चित कहानियों का संकलन)
संपादक : डॉ. अमित धर्मसिंह
प्रकाशक : रचनाकार प्रकाशन, वहलना, मुजफ्फरनगर
प्रथम संस्करण: 2024 पेपरबैक
पृष्ठ संख्या 168, 
मूल्य : 250/₹
ISBN : 978-93-85564-21-5